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विरासत महोत्सव में आयोजित हुई क्विज प्रतियोगिता में ओक ग्रोव स्कूल बना विजेता

Oak Grove School emerged victorious in the quiz competition held during the Heritage Festival.
Oak Grove School emerged victorious in the quiz competition held during the Heritage Festival.

महाभारत काल की पौराणिक “चक्रव्यूह” संरचना का नाट्य मंचन देखने को उमड़ी भीड़, हुए सभी आश्चर्यचकित

नाट्य मंचन में अभिमन्यु के अद्भुत एवं बेहतरीन साहस को देख सभी रह गए दंग

विरासत में गूंजे लोक संगीत के ख्याति प्राप्त दो सगे गायक कश्यप भाइयों के आकर्षक सुर संगीत

प्रसिद्ध गायिका डॉ.एन राजम की वायलिन प्रस्तुति से महक उठा विरासत

विरासत सांस्कृतिक संध्या में आज मुख्य अतिथि के रुप में श्री सुभाष कुमार, पूर्व सीएमडी, ओएनजीसी मौजूद रहे।

श्रीमती गीता पुष्कर धामी के आने से विरासत की महफिल में लग गए चार चांद

देहरादून,11 अक्टूबर 2025 – विरासत महोत्सव में आज आयोजित हुई क्विज प्रतियोगिता में भिन्न भिन्न स्कूलों के बच्चों ने उत्साह पूर्वक प्रतिभाग किया, जिसमें ओक ग्रोव स्कूल ने प्रथम स्थान हासिल करके विरासत में भी अपना नाम दर्ज कर दिया है I आज की शुभ प्रातः काल में विरासत महोत्सव के अंतर्गत प्रश्नोत्तरी 2025 का आयोजन किया गया, जिसमें देहरादून के 18 प्रतिष्ठित विद्यालयों ने अपनी अपनी तैयारी के साथ उत्साहपूर्वक भाग लिया। प्रश्नोत्तरी की शुरुआत एक लिखित परीक्षा से हुई, जिसके बाद क्विज़ मास्टर डॉ. सरगम मेहरा ने उत्तरों पर चर्चा की I क्विज प्रतियोगिता के मूल्यांकन के बाद केवल चार विद्यालय ही चरण-चरण के लिए अर्हता प्राप्त कर पाए और दून इंटरनेशनल स्कूल (सिटी कैंपस), समर वैली स्कूल, और ओक ग्रोव स्कूल (ओक ग्रोव की दो टीमों ने क्वालीफाई किया)।

प्रतियोगिता में पाँचवें और अंतिम दौर सहित कई चुनौतीपूर्ण लम्हों के बाद ओक ग्रोव स्कूल विरासत प्रश्नोत्तरी 2025 का विजेता बना। विजेता टीम में आयुषी गुप्ता (कक्षा 12), चार्वी प्रताप सिंह (कक्षा 12) शामिल रहीं। जबकि दून इंटरनेशनल स्कूल (सिटी कैंपस) ने उपविजेता का स्थान प्राप्त किया, जिसका प्रतिनिधित्व ऐश्वर्या प्रताप सिंह (कक्षा 12) और आद्या राय (कक्षा 12) ने किया। इस क्विज़ ने न केवल छात्रों के भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के ज्ञान का परीक्षण किया, बल्कि उनके उत्साह और टीम वर्क को भी उजागर किया। आयोजित इस महत्वपूर्ण क्विज प्रतियोगिता में देश के विभिन्न ऐतिहासिक स्थानों से संबंधित प्रश्न करते हुए उनके उत्तर हासिल किए गए I उत्तराखंड से संबंधित भी अनेक स्थानों के विषय में क्विज़ प्रतियोगिता में प्रश्नोत्तरी की गई I कार्यक्रम के अंत में विरासत की समन्वयक सुश्री राधा चटर्जी ने विजेताओं और उपविजेता टीमों को प्रमाण पत्र प्रदान किए और उनकी प्रतिभा और प्रयासों की प्रशंसा की। कार्यक्रम का समापन सभी प्रतिभागी स्कूलों की सराहना और तालियों के साथ हुआ, जिससे विरासत हेरिटेज क्विज़ 2025 बुद्धिमत्ता, विरासत और युवा ऊर्जा का एक यादगार उत्सव बन गया।

विरासत महोत्सव में आज के खास मेहमान मुख्य अतिथि ओएनजीसी के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक श्री सुभाष कुमार रहे I उन्होंने विरासत की संध्या का विधिवत शुभारंभ किया और विरासत के आयोजन को बखूबी सराहा एवं प्रशंसा की I इस अवसर पर उनके साथ विरासत आयोजन के मुख्य आयोजक रीच संस्था के संरक्षण आरके सिंह व संयुक्त सचिव विजयश्री जोशी मुख्य रूप से मौजूद रहीं I

 

महाभारत काल की पौराणिक “चक्रव्यूह” संरचना का नाट्य मंचन देखने को उमड़ी भीड़, हुए सभी आश्चर्यचकित

नाट्य मंचन में अभिमन्यु के अद्भुत एवं बेहतरीन साहस को देख सभी रह गए दंग

विरासत महोत्सव में आज शनिवार को पौराणिक एवं ऐतिहासिक महाभारत काल के चक्रव्यूह नाट्य मंचन की आकर्षक एवं भव्य प्रस्तुति की गई, जिसे देखकर यहां उमड़ी हज़ारों की भीड़ आश्चर्य चकित रह गई I यह नाट्य मंचन मशहूर कलाकार पंकज कुमार नैथानी के निर्देशन में हुआ और उसकी पटकथा विद्याधर के श्रीकाल, श्रीनगर (गढ़वाल) के निर्देशक प्रो. डीआर पुरोहित द्वारा की गयी I

महाभारत में वर्णित सबसे प्रतिष्ठित सैन्य संरचनाओं में से एक “चक्रव्यूह” की सदियों पुरानी कथा को विद्याधर के श्रीकाल (श्रीनगर, गढ़वाल) द्वारा विरासत कला एवं विरासत महोत्सव 2025 में प्रभावशाली ढंग से जीवंत किया गया। इस प्रस्तुति में अभिमन्यु के महान साहस को दर्शाया गया, जो वीरता, बलिदान और धर्म एवं शक्ति के बीच शाश्वत संघर्ष का प्रतीक है। इस चक्रव्यूह की पौराणिक एवं ऐतिहासिक धार्मिक दृष्टि से जो कहानी सामने है उसके अनुसार, चक्रव्यूह एक सर्पिलाकार युद्ध संरचना विरोधियों को फँसाने के लिए रचा गया था। कुरुक्षेत्र युद्ध के तेरहवें दिन युवा योद्धा अभिमन्यु, हालाँकि केवल सोलह वर्ष के थे, पांडव सेना की रक्षा के लिए इस संरचना में प्रवेश कर गए। केवल प्रवेश करना सीखा था, लेकिन बाहर निकलना नहीं, इसलिए उन्होंने द्रोण,कर्ण, दुर्योधन और अन्य शक्तिशाली योद्धाओं के विरुद्ध वीरतापूर्वक युद्ध किया, इससे पहले कि उन्हें घेर लिया गया और मार डाला गया। उनकी वीरता भारतीय महाकाव्यों की सबसे मार्मिक कथाओं में से एक है।

उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थानीय परंपराएँ अक्सर पांडवों से जुड़ी मानी जाती हैं। पांडव लीला और पांडव नृत्य जैसे अनुष्ठान प्रदर्शनों के माध्यम से इन पौराणिक कथाओं को रंगमंच और भक्ति दोनों की अभिव्यक्ति के रूप में पुनर्जीवित किया जाता है। श्रीकाला द्वारा चक्रव्यूह का प्रदर्शन इस विरासत को समकालीन दर्शकों से जोड़ता है, जिसमें क्षेत्रीय संगीत,कथा और अनुष्ठानिक प्रतीकात्मकता का सम्मिश्रण होता है I सांस्कृतिक कार्यकर्ता विद्याधर द्वारा स्थापित श्रीकाला अनुसंधान,प्रशिक्षण और सजीव प्रदर्शन के माध्यम से गढ़वाली लोक रंगमंच के संरक्षण के लिए समर्पित है। गढ़वाली अनुष्ठानिक नाट्य अध्ययन के प्रोफेसर डीआर पुरोहित के मार्गदर्शन में श्रीकाला ने चक्रव्यूह जैसी पारंपरिक कहानियों को पुनर्जीवित किया है,जिसमें प्रमाणिकता और कलात्मकता का सम्मिश्रण है। चक्रव्यूह की संरचना का शानदार एवं अदभुत मंचन करने वाले कलाकारों में क्रमशः जयद्रथ की भूमिका में पंकज नैथानी, द्रोणाचार्य भूमिका में गौरव नेगी, दुशासन की भूमिका में रॉबिन असवाल तथा कर्ण की भूमिका में गणेश बलूनी रहे I इसके अलावा लक्ष्मण की भूमिका में किरदार निभाने वाले अभिषेक, शल्य की भूमिका तुषार द्वारा निभाई गई I इस अद्भुत नाट्य मंचन में 41 कलाकारों ने अपनी शानदार एवं अद्भुत भूमिका का निर्वहन कर सभी को आश्चर्य चकित कर दिया,अन्य प्रतिभागी कलाकारों में कृपाचार्य-अर्जुन राणा, अश्वत्थामा-अभिषेक सेमवाल, शकुनि-रवीन्द्र सिंह, दुर्योधन-हरीश पुरी, ध्वजवाहक-आदित्य, मानक वाहक-अतुल, कागाली-मुकेश पंत,भगवान श्रीकृष्ण-प्रवेश, अभिमन्यु-अंकित भट्ट, युधिष्ठिर-अंकित उछोली के शामिल होने के साथ-साथ भीम की भूमिक विनोद कुमेड़ी ने की I जबकि अर्जुन-सुधीर डंगवाल, नकुल-शिवांक नौटियाल, सहदेव-नमित, द्रौपदी-साक्षी पुंडीर,उत्तरा-श्रेया उनियाल, सात्यकि-जतिन भट्ट,धृष्टद्युम्न- दिशान्त धनै,पंडित-मदनलाल डंगवाल, पंडित-बद्रीश छाबड़ा, पंडित-गणेश खुशशाल ‘गनी’, व ध्वजवाहक की भूमिका में अनुराग रहे I इसी श्रृंखला में फिल्मी संगीत समूह और वाद्य यंत्रवादक में संजय पांडे व शैलेन्द्र मैठाणी-संगीतकार, मनीष खाली-संगीतकार, सुधीर डंगवाल-संगीतकार, आरसी जुयाल-हुड़का, कैलाश ध्यानी-बांसुरी, हरीश लाल-ढोल और दमाऊ, किशोरी लाल-ढोल और दमाऊ, सुनील कोटियाल- भंकोरे (टक्कर दल), रोशन-भंकोरे (टक्कर पहनावा), लता तिवारी पांडे-स्वर का सहयोग रहा I मुख्य बात यह है कि नाट्य मंचन में प्रत्येक कलाकार ने पूरी ईमानदारी से योगदान देकर महाभारत के सार को मंच पर जीवंत कर दिया। गढ़वाली लोक नाट्य, पारंपरिक संगीत और नाटकीय कथावाचन के सम्मिश्रण के माध्यम से इस प्रस्तुति ने अभिमन्यु की अदम्य वीरता और हिमालयी क्षेत्र की जीवंत सांस्कृतिक विरासत को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

यह बताना भी आवश्यक है कि चक्रव्यूह महाकाव्य युद्ध पर आधारित है। धार्मिक मान्यताओं ने गढ़वाल क्षेत्र की संस्कृति और परंपराओं को महत्वपूर्ण रूप से आकार दिया है, और ऐसी ही एक अमूल्य सांस्कृतिक विरासत पांडव नृत्य है, जिसे पांडव लीला के नाम से भी जाना जाता है। यह परंपरा मुख्य रूप से रुद्रप्रयाग और चमोली जिलों की मंदाकिनी और अलकनंदा घाटियों में विस्तृत धार्मिक नृत्यों और नाट्य प्रदर्शनों के माध्यम से मनाई जाती है। उत्तराखंड में कड़ाके की ठंड के दौरान, गढ़वाल के छोटे-छोटे गाँवों के निवासी पांडव नृत्य का अभ्यास करके सक्रिय रहते हैं। यह औपचारिक नृत्य पांडवों की यात्रा का स्मरण कराता है और उत्तराखंड के घरों और गाँवों में खुशियाँ लाता है। पांडव नृत्य का गढ़वाल की पौराणिक कथाओं और इतिहास में एक विशेष स्थान है। यह नृत्य पाँच पांडव भाइयों की कहानी बताता है, उनके जन्म से लेकर उनकी स्वर्गारोहिणी यात्रा (स्वर्ग की यात्रा) की शुरुआत तक। उनकी यात्रा के विभिन्न पहलुओं को ढोल की थाप पर प्रदर्शित किया जाता है। उत्तराखंड की पांडव लीला महाभारत के “धर्मयुद्ध” का अनुकरण करती है। यह नृत्य विभिन्न विषयों को छूता है, जिनमें कीचक वध (कीचक का वध), नारायण विवाह (भगवान विष्णु का विवाह), चक्रव्यूह (गुरु द्रोण द्वारा रचित एक सैन्य रणनीति) और गेंदा वध (एक नकली गैंडे की बलि) शामिल हैं। चक्रव्यूह में पाँचों पांडवों युधिष्ठिर,भीम,अर्जुन,नकुल और सहदेव भव्य चित्रण करने वाले कलाकारों ने ढोल-दमाऊ और अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुनों पर नृत्य किया। इसमें कौरवों ने एक चतुर युद्धनीति का उपयोग करके अभिमन्यु का वध किया। चक्रव्यूह प्रस्तुत करने वाले समूह का नेतृत्व प्रोफेसर दाताराम पुरोहित ने किया। गढ़वाली लोक कलाकारों की उनकी टीम ने चक्रव्यूह का शानदार चित्रण किया और उपस्थित विशाल दर्शकों का मन मोह लिया। इस चक्रव्यूह की पहली प्रस्तुति 2001 में गांधारी गाँव में हुई थी। आज की प्रस्तुति में, प्रतिभाशाली कलाकारों द्वारा चक्रव्यूह का विस्तृत रूप से निर्माण और चित्रण किया गया। जौनसार से आए रणसिंह वादन दल में (अनिल वर्मा और चंदन पुंडीर) शामिल थे, जबकि (धाड़ संस्था) के अध्यक्ष अखिलेश दास भी उपस्थित रहे I “चक्रव्यूह” के आयोजन में श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय के महंत देवेन्द्र दास जी और विश्वविद्यालय के छात्रों का विशेष योगदान रहा।

विरासत में गूंजे लोक संगीत के ख्याति प्राप्त दो सगे गायक कश्यप भाइयों के आकर्षक सुर संगीत

भारतीय शास्त्रीय संगीत की विश्व विख्यात मधुर सुर संगीत के संसार में अपनी गायकी को लोकप्रिय बनाने वाले मशहूर कलाकारों प्रभाकर कश्यप व दिवाकर कश्यप के सुर-संगीतोंं से विरासत की महफिल मनमोहक हो उठी I कश्यप बंधु ने झपताल में राग बिहाग से अपनी प्रस्तुति की शुरुआत की और एक ताल बंदिश ‘काहे मोरे मन बतानी’ में परिवर्तित हो दर्शकों का दिल जीत लिया। इसके बाद उन्होंने राग मेघ में एक बंदिश पेश की, ‘गगन गरज दमकत दामिनी..’ भव्य विरासत की इस महफिल में कश्यप बंधु के साथ तबले पर मशहूर पं. शुभ महाराज, हारमोनियम पर सुमित मिश्रा और तानपुरा पर पद्माकर कश्यप व पीयूष मिश्रा रहे I

इस अनूठी और आकर्षण का केंद्र बनी रहने वाली दो सगे भाइयों की जोड़ी कश्यप बंधु ने बचपन में ही अपने माता-पिता, पं. रामप्रकाश मिश्र और श्रीमती मीरा मिश्र से संगीत की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। बाद में उन्होंने बनारस घराने के गुरुओं, पद्मभूषण पं. राजन मिश्र और पं. साजन मिश्र के मार्गदर्शन में प्रशिक्षण प्राप्त किया। बनारस गायकी वाली यह जोड़ी अपनी उत्कृष्ट लयकारी और बेजोड़ मधुरता के लिए जानी जाती है।

कश्यप बंधु की आवाज़ प्रभावशाली और भावपूर्ण है, जो तीनों सप्तकों में समान सहजता से प्रवाहित होती है। कश्यप बंधु के पास ख़याल के साथ-साथ ठुमरी, दादरा, टप्पा और भजनों में मधुर “बंदिशों” का एक समृद्ध संग्रह है जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता है। वे आकाशवाणी और दूरदर्शन के शीर्षस्थ कलाकार भी हैं। उन्हें संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली द्वारा उस्ताद बिस्मिल्लाह खां युवा पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही आईसीसीआर, भारत सरकार के वे कलाकार भी हैं। वे स्पिकमैके और सुर श्रृंगार संसद, मुंबई द्वारा सुरमणि के पैनलबद्ध कलाकार हैं।

कश्यप बंधु ने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित मंचों पर प्रस्तुति दी है, जिनमें सवाई गंधर्व भीमसेन महोत्सव, पुणे, सप्तक संगीत समारोह, अहमदाबाद, उस्ताद अमीर खां संगीत समारोह, इंदौर और कई अन्य शामिल हैं I देश-विदेश में विभिन्न प्रतिष्ठित पुरस्कारों के विजेता डॉ. प्रभाकर कश्यप वर्तमान में पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं और डॉ. दिवाकर कश्यप इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़, छत्तीसगढ़ में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।

प्रसिद्ध गायिका डॉ.एन राजम की वायलिन प्रस्तुति से महक उठा विरासत

विरासत की महफिल में कई भारतीय शास्त्रीय संगीत के कलाकार इस बार अपनी-अपनी बेहतरीन प्रस्तुतियां अब तक दे चुके हैं, जो कि एक तरह से शास्त्रीय संगीत की दुनिया के अनमोल रत्न कहे कह जाएं तो उसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी I ऐसा ही एक अनमोल रत्न महिला वायलिन वादक डॉ. एन राजम हैं I डॉ. एन. राजम अपनी पोती रागिनी शंकर के साथ वायलिन वादन की और पंडित मिथिलेश झा ने उन्हें तबले पर संगत दी। वह राग दरबारी कानडा से अपने कार्यक्रम की शुरुआत की उसके बाद उन्होंने एक सुन्दर भजन “ठुमक चलत रामचन्द्र बाजत पीड़ानिया” बजाया I

वे अपने शास्त्रीय संगीत से पिछले अनेक दशकों में अपनी कला का जादू भिन्न-भिन्न जगह पर बिखेर चुकी हैं I पद्म भूषण श्रीमती एन राजम शास्त्रीय संगीत की एक ऐसी हस्ती हैं जिन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। वह एक ख्याति प्राप्त भारतीय वायलिन वादक हैं जो हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत प्रस्तुत करती हैं। वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संगीत की प्रोफेसर थीं, और अंततः विभागाध्यक्ष और विश्वविद्यालय के प्रदर्शन कला संकाय की डीन बनीं।

उन्हें संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप से सम्मानित किया गया, जो भारत की राष्ट्रीय संगीत, नृत्य और नाटक अकादमी, संगीत नाटक अकादमी द्वारा प्रदान किया जाने वाला प्रदर्शन कला का सर्वोच्च सम्मान है। एन. राजम को भारत सरकार से पद्मश्री और पद्म भूषण की प्रतिष्ठित उपाधियाँ प्राप्त हो चुकी हैं I उन्होंने कर्नाटक संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की। उन्होंने मुसिरी सुब्रमण्यम अय्यर से भी प्रशिक्षण लिया और गायक ओंकारनाथ ठाकुर से राग विकास की शिक्षा ली। अपने पिता ए. नारायण अय्यर के मार्गदर्शन में राजम ने गायकी अंग (गायन शैली) विकसित की।

एन. राजम के साथ रागिनी शंकर भी मौजूद रही। रागिनी एक भारतीय वायलिन वादक हैं जो हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और फ्यूजन प्रस्तुत करती हैं। वह प्रसिद्ध पद्मभूषण डॉ. एन. राजम की पोती और स्वयं एक प्रसिद्ध वायलिन वादक डॉ. संगीता शंकर की पुत्री हैं।

शायरी से गुल….. गुलज़ार….. और महक….. उठा विरासत महोत्सव

“मुशायरे की महफिल” से सजा विरासत का चप्पा-चप्पा और पदमश्री शीन क़ाफ़ निज़ाम ने बना दिया सभी को दीवाना

गज़ब की शायरी और सुर आवाज़ में अगर कमाल का जादू हो तो, यकीनन वह महफ़िल महक उठेगी और उस बेहद ही सुगन्धित महक से कोई भी श्रोता अथवा प्रशंसक मेहरूम नहीं रहना चाहेगा I जी हां, विरासत महोत्सव में आज की शानदार मुशायरे की महफिल की महक कुछ इसी तरह घंटों तक बनी रही I मुशायरा का रस विरासत की महफिल में इतना घुला कि कोई भी श्रोता अथवा प्रशंसक अपनी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं हुआ और खचाखच भरे विरासत पंडाल में तथा उसके बाहर प्रांगण में लोग भरपूर आनंद शायरी एवं गजलों का लेते रहे I सबसे पहले पदम श्री से विभूषित हो चुकीं मशहूर शायर शीन क़ाफ़ निज़ाम की गज़ब की शायरी ने सभी को दीवाना बनाया तो वहीं, विरासत की महफिल में शायरी की ख़ुशबू फैलाने में अन्य मशहूर शायरों फरहत एहसास, मदन मोहन दानिश, शकील आज़मी और रश्मि सबा ने भी शायरी व ग़ज़लों की महकती हुई बौछारों से सभी पर जादू किए रखा I

भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया से जुड़े हुए आज के आकर्षण एवं भव्य मुशायरे के प्रसिद्ध कलाकारों ने यकीनन लोगों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ते हुए उनके दिल गजलों तथा शायरी से बाग़-बाग़ कर दिए I आज की मन और हृदय को छू लेने वाली शायरी ने विरासत महोत्सव का गार्डन महकाने में कोई कमी नहीं छोड़ी I मशहूर शायर फरहत एहसास एक प्रख्यात और सम्मानित उर्दू कवि और लेखक हैं, जो साहित्य, पटकथा लेखन व समसामयिक विषयों पर टिप्पणी के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कौमी आवाज़ और बीबीसी की उर्दू सेवा के संपादक के रूप में काम किया है I आकाशवाणी और टेलीविजन के लिए लेखन भी किया,उन्हें प्रसिद्ध मुशायरों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में प्रस्तुति देने के लिए भी जाना जाता है। पद्मश्री शिव किशन बिस्सा, जिनका उपनाम शीन काफ़ निज़ाम है, जोधपुर से हैं और एक उर्दू कवि और साहित्यकार हैं। उन्होंने प्रसिद्ध उर्दू कवि मीराजी और मुनीर नियाज़ी सहित देवनागरी में कई कविताओं का संपादन किया है।

निज़ाम के कविता संग्रह “गुमशुदा दैरे की गूंजती घंटियाँ” को उर्दू में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। जबकि मदन मोहन दानिश एक समकालीन उर्दू कवि हैं जो प्रेम, जीवन और मृत्यु के विषयों पर अपने गहन दोहों और नवीन अभिव्यक्ति के लिए जाने जाते हैं। विभिन्न मुशायरों में उनकी उपस्थिति उन्हें एक लोकप्रिय शायर बनाती है।

उनका कविता संग्रह “आसमान फुर्सत में है” काफी लोकप्रिय रहा है। वे ग्वालियर के रहने वाले हैं, उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के साथ काम किया है और मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार प्राप्त किया है। विरासत में आज की अजीम शख्सियत शकील आज़मी भी (जन्म 20 अप्रैल, 1971) एक भारतीय गीतकार और कवि हैं। भारत के आजमगढ़ में जन्मे वे उर्दू भाषा में लिखते हैं और मुख्य रूप से बॉलीवुड में एक फिल्म गीतकार के रूप में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं। उनकी अधिकांश कविताएँ ग़ज़लों पर केंद्रित हैं, जो उर्दू शायरी की एक विधा है। वे एक गीतकार हैं, उनके कई कविता संग्रह हैं, लेकिन उनकी पुस्तक, “पोखर में सिंघाड़े, बचपन की जीवनी” एक लोकप्रिय पुस्तक रही है।

रश्मि शर्मा सबा का नाम भी बड़े अदब से लिया जाता है और वे अर्थशास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर हैं, लेकिन उनका जुनून उर्दू और हिंदी कविता में है। पिछले 30 वर्षों से वह कविता, ग़ज़ल, गद्य और नज़्म लिख रही हैं और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न कवि सम्मेलनों और मुशायरों में प्रस्तुति दे रही हैं। उनका ग़ज़ल संग्रह ‘रात ने कहा मुझसे….., समकालीन साहित्य की एक प्रसिद्ध कृति रही है। मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी ने भी उन्हें ‘शिफा ग्वालियारी सम्मान’ से सम्मानित किया है।