Home उत्तराखंड उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार के दीक्षांत समारोह में सम्मिलित हुए

उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार के दीक्षांत समारोह में सम्मिलित हुए

Attended the convocation of Uttarakhand Sanskrit University, Haridwar
Attended the convocation of Uttarakhand Sanskrit University, Haridwar

-दीक्षांत समारोह में कुल 3047 छात्र-छात्राओं को उपाधि प्रदान की गई
हरिद्वार(आरएनएस)।   राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) शुक्रवार को उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार के दीक्षांत समारोह में सम्मिलित हुए। दीक्षांत समारोह के दौरान राज्यपाल ने स्वामी गोविंद देव गिरी, डॉ. चिन्मय पंड्या एवं आचार्य श्रीनिवास बरखेड़ी जी को विद्या वाचस्पति (डी लिट) की उपाधि प्रदान की। उन्होंने विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं को स्वर्ण पदक, पीएचडी उपाधि सहित स्नातक एवं परास्नातक उपाधि भी प्रदान की।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने भारत में जन्म लेने को भगवान का आशीर्वाद बताते हुए इसे अपना सौभाग्य बताया। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा एक चमत्कारिक भाषा है जिसके मंत्रों के उच्चारण मात्र से विभिन्न कार्य संपन्न हो जाते हैं। उन्होंने संस्कृत के संरक्षण और संवर्धन के लिए समर्पित उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय को बधाई देते हुए कहा कि हम सभी को संस्कृत के संरक्षण, संवर्द्धन और प्रचार-प्रसार के लिए कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने सभी छात्र-छात्राओं को बधाई और शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आप सभी हमारे भारत की संस्कृति को आगे बढ़ा के ले जाएँगे।
राज्यपाल ने कहा कि यह समय हमारे लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारत के विकास में संस्कृत एक बहुत बड़ी भूमिका निभाने वाली है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में संपूर्ण पृथ्वी को ही अपना परिवार माना है।
राज्यपाल ने कहा कि किसी भी राष्ट्र के नवनिर्माण में युवाओं की भी बहुत बड़ी भूमिका होती है। हमारे देश में युवाओं की संख्या 65 प्रतिशत लोग युवा हैं। युवाओं को तो केवल समुचित मार्ग दर्शन और प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है, युवा दुनिया को बदल सकते हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृत से बड़ा दूसरा कोई साधन नहीं है जो संपूर्ण शिक्षा प्रदान कर सकता हो। हमें अपनी संस्कृत भाषा की क्षमता को पहचानना है, इस पर शोध करने की आवश्यकता है।
राज्यपाल ने कहा कि संस्कृत विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है। इसका साहित्य भी विशाल है। संस्कृत भाषा में असंख्य ग्रंथ आज भी उपलब्ध है। जब दुनिया के अन्य हिस्सों में लोग सामान्य जीवन जी रहे थे तब हमारे देश में ऋषि मुनि दिव्य दृष्टि एवं अलौकिक दिव्य शक्तियों एवं साधना के द्वारा मानवता के कल्याण के लिए लगातार प्रयासरत थे। इसकी गहराई को समझते हुए इसके ज्ञान के भंडार को आज की बाजार की शक्तियों और इको सिस्टम से जोड़ते हुए संस्कृत का संरक्षण संवर्द्धन की दिशा में कार्य किया जा
राज्यपाल ने कहा कि कोविड के दौरान समझ आया कि हम हजारों सालों से हाथ जोड़ कर नमस्कार क्यों करते हैं। उन्होंने सभी से संस्कृत की दिव्यता, भव्यता, पवित्रता और स्वच्छता के लिए अपना-अपना योगदान देने की अपील की। किसी भी राष्ट्र की आत्मा उसकी संस्कृति होती है। उन्होंने कहा कि जब तक किसी देश की संस्कृति जिंदा रहती है उस देश का अस्तित्व बना रहता है। हमें अपनी भाषा संस्कृत और अपने देश की संस्कृति को संरक्षण प्रदान करना होगा।
राज्यपाल ने कहा कि संस्कृत के विकास में हम लोग स्वयं ही बाधक है। हमें अपने ज्ञान को बांटने का प्रयास करना चाहिए। ताकि इसका अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार हो सके। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड और संस्कृत का बहुत गहरा संबंध है। हर एक उत्तराखण्डी की आत्मा में जो दिव्यता और भव्यता है इसमें संस्कृत की बहुत बड़ी भूमिका है। आस्था के बड़े-बड़े केंद्र बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री धाम इसी देव भूमि में हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें इस बात की बहुत खुशी है कि उत्तराखण्ड देश का पहला राज्य है जिसकी द्वितीय भाषा संस्कृत है। लेकिन हम संस्कृत के विकास के लिए क्या कर रहे हैं, यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। हमें पठन-पाठन, अध्ययन-अध्यापन और आधुनिक विज्ञान के शोध के लिए संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है। हमें संस्कृत के प्रचार-प्रसार और पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए लगातार कार्य करना होगा।
इस अवसर पर कुलपति प्रो. दिनेश चंद्र शास्त्री एवं सचिव संस्कृत शिक्षा श्री दीपक कुमार सहित छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।