शिंजिनी ने अपनी मनमोहक एवं आकर्षक प्रस्तुति से जीता सभी श्रोताओं का दिल
भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में मशहूर कत्थक नृत्यांगना शिंजिनी कुलकर्णी ने अपने राग एवं कथक की मधुर नृत्य से सभी श्रोताओं का हृदय जीत लिया I उन्होंने अपनी भाव भंगिमाओं और लयबद्ध निपुणता से सभी का मन मोह लिया I उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत वंदना से की I उनके साथ संगत संगीत मंडली में तबले पर पंडित शुभ महाराज व पंडित योगेश गंगानी, स्वर और हारमोनियम पर जयवर्धन दाधीच, पखावज पर सलमान वारसी, सारंगी पर जनाब वारिस खान व पद्धांत पर आर्यव आनंद ने बेहतरीन साथ देकर विरासत की महफिल को और भी खुशनुमा और भक्तिमय बना दिया I कालका बिंदादीन वंश की नौवीं पीढ़ी में जन्मी शिंजिनी कुलकर्णी कथक के महानायक पंडित बिरजू महाराज की पोती हैं। तीन साल की उम्र से ही शिंजिनी ने अपने दादा के संरक्षण में कथक का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया था, उनके अनुसार, हमारे घर में सीखना एक संस्कार है। शिंजिनी की पहली गुरु उनकी मौसी ममता महाराज थीं, जिन्होंने परिवार के सभी बच्चों को बुनियादी शिक्षा दी। बाद में बिरजू महाराज उनके गुरु बने और उनके बाद उनके सबसे बड़े भाई पंडित जयकिशन जी महाराज उनके गुरु बने। वह इस विशाल विरासत का भार बड़ी खूबसूरती से उठाती हैं, लेकिन उनका कहना है कि उनकी विरासत एक व्यक्ति के लिए बहुत बड़ी है, पूरा कथक जगत उनकी विरासत को संभाल रहा है। उन्होंने खजुराहो नृत्य महोत्सव, संकट मोचन समारोह, ताज महोत्सव, चक्रधर समारोह, कालिदास महोत्सव, कथक महोत्सव आदि जैसे प्रतिष्ठित समारोहों में प्रस्तुति दी है। उन्होंने भारत और विदेश के विभिन्न शहरों जैसे न्यूयॉर्क, सैन फ्रांसिस्को आदि में कई एकल और समूह प्रस्तुतियाँ दी हैं, और अपने करियर के छोटे से समय में ही दर्शकों से स्नेहपूर्ण प्रशंसा और आशीर्वाद प्राप्त किया है। खास बात यह है कि उनका बॉलीवुड से भी नाता रहा है, और अपने नाना की तरह यह रिश्ता भी छोटा ही रहा है। उन्होंने मुजफ्फर अली की फिल्म जांनिसार, बंगाली फिल्म हर हर ब्योमकेश और रवि किशन के साथ एक भोजपुरी फिल्म में अभिनय किया है। शिंजिनी नवगठित शुद्ध शास्त्रीय संगीत पर आधारित तालवाद्य बैंड-लयाकारी की भी सदस्य हैं। उन्हें अपने दादाजी की नृत्यकलाओं जैसे नृत्य केलि, संपादन, होली उत्सव, कृष्णयान और लोहा आदि का हिस्सा बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। उन्हें तराना फाउंडेशन का युवा प्रतिभा पुरस्कार और अंतर्राष्ट्रीय कटक नृत्य महोत्सव में नृत्य शिरोमणि की उपाधि से सम्मानित किया गया। उन्हें संगीत कला निकेतन, जयपुर द्वारा परंपरा सम्मान प्रदान किया गया। दूसरे खंड में शिंजिनी ने “लक्ष्य” नामक एक विशेष प्रस्तुति दी, जो सूर्य की खोज को दर्शाती एक नृत्य रचना है।
प्रस्तुति का समापन अभिनय खंड के साथ हुआ, जहाँ उन्होंने भाव पक्ष अभिव्यक्ति परक पहलू में एक ठुमरी का सुंदर प्रदर्शन किया, जिससे श्रोता उनकी भावपूर्ण अभिव्यक्ति और सूक्ष्म कलात्मकता से मंत्रमुग्ध हो गए।
शिंजिनी ने अपनी नृत्य प्रस्तुति में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के दिग्गजों पंडित राजन साजन मिश्र, डागर बंधु, पंडित जसराज और कई अन्य महान कलाकारों की भक्ति रचनाओं को सम्मिलित किया।